शुक्रवार, 18 जुलाई 2025

अभय त्रिपाठी जी के कविता संग्रह - दुसरका खण्ड

अभय त्रिपाठी

(बनारस, उत्तर प्रदेश)

रामजी के आईल बरात  

 रामजी के आईल बरात जनकपुर बाजे बधऽईया,
उनकर लीला बा अपरम्पार जनकपुर बाजे बधऽइया.

राजा जनकजी के चिन्ता हरले, सियाजी के मनवा के मनसा पुरवले.
सब भईयन के कइले बेड़ा पार जनकपुर बाजे बधऽईया.
रामजी के आईल बरात..........

सब नर-नारी पशु-पक्षी प्रानी, हरषि हरषि गुन गावत जानी.
रिषी मुनियन से मिलल आशीर्वाद जनकपुर बाजे बधऽईया.
रामजी के आईल बरात..........

सगरे जनकपुर के राजदुलारी, हो गईली प्रभु राम के प्यारी.
उनकर डोली चलल ससुराल जनकपुर बाजे बधऽईया.
रामजी के आईल बरात..........

रामजी के आईल बरात जनकपुर बाजे बधऽईया,
उनकर लीला बा अपरम्पार जनकपुर बाजे बधऽइया.
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मगन भइल मनवा


मगन भइल मनवा हरि गुन गाइब,
मगन भइल मनवा ...........

गंगा नहाईब ना तीरथ जाइब घरवे में हम अलख जगाईब,
दान पुण्य कऽ विधि ना जानी सब कुछ आपन देहि लुटाईब.
मगन भइल मनवा ...........

छल प्रपन्च से नाता तोड़ब अपना पराया भेद मिटाईब,
सब कर बड़ा पार लगाईब सबही के अपनाईब हो रामा.
मगन भइल मनवा ...........

मन्दिर मस्जिद में ना भुलाईब राम रहीम सब एकही मानिब,
सच्चाई के गला लगाईब सगरे दर्शन पाईब हो रामा.
मगन भइल मनवा ...........

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भजन कर जिभिया.


भजन कर जिभिया काहे बऊरानी भजन कर जिभिया.

यह जग थोडे़ दिन कऽऽ बसेरा, रिश्ता नाता सुख सपना कऽऽ,
भ्रम टूटे बिलगानी भजन कर जिभिया काहे बऊरानी .

बालकपन में खेल में भागे बृद्ध भये तन काँपन लागे,
का करिहो अभिमानी भजन कर जिभिया काहे बऊरानी .

दिन दिन बितल जाये उमरिया समय गुजरले कुछ होईऽ न गोइयाँ,
सिर धुन धुन पछतानी भजन कर जिभिया काहे बऊरानी .

एक से बढ़कर एक गुमानी जात पात में डूबल ग्यानी,
समरथ भये अलसानी भजन कर जिभिया काहे बऊरानी .

भजन कर जिभिया काहे बऊरानी भजन कर जिभिया .
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माया बा दुखदाई हो मनवा


माया बा दुखदाई हो मनवा माया बा दुखदाई,
एहि पल छीना ओहि पल दीना सदा रहे उलझाई
माया बा दुखदाई हो मनवा माया बा दुखदाई.

घर में बन में मन मन्दिर में बइऽठ के धाक जमाई,
के बा आपन के बा पराया भेद दिहि बतलाई.
माया बा दुखदाई हो मनवा माया बा दुखदाई.

बिटवा माई और बाबु से बहुते फूट कराई,
सात जनम कऽ रिश्ता भी बहुते रार मचाई.
माया बा दुखदाई हो मनवा माया बा दुखदाई.

ना कोई ले आइल बा भइया ना कोई ले जाई,
एहि से ध्यान हटा के भइया कर लऽऽ तू चतुराई.
माया बा दुखदाई हो मनवा माया बा दुखदाई.
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सच बा गुरु के बचनिया


सच बा गुरु के बचनिया हो रामा जगतिया में केहु नाही अपना,
केहु नाही अपना हो सब कुछ सपना जगतिया में केहु नाही अपना.

काम नाही अइहैं धन दौलतिया ना होइहैं कोइ संगी संघतिया,
सूर, रहीम गइलैं मीरा जइसन ग्यनिया छोड़ि छोड़ि आपन निशनियाँ.
जगतिया में केहु नाही अपना.

तोहके नचावेले माया के पुतरिया ग्यान पर चलावे सगरे कटरिया,
अबहु ले सोच भइया धर के धयनवा हो जइहैं तब तोहरो ठेकनवा.
जगतिया में केहु नाही अपना.

एक दिन उड़ी जइहैं काया के सगनवा केतनो तू करबऽऽ जतनवा,
भाई बन्धु सब देखइहन नयनवा माया मिली न राम ए भइया.
जगतिया में केहु नाही अपना.

सच बा गुरु के बचनिया हो रामा जगतिया में केहु नाही अपना,
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इक दिनवा पछतऽईबऽऽ हो मोरे मनवा


इक दिनवा पछतऽईबऽऽ हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.

भाई बन्धु हो जइहें बेगनवा,
जरिहें अकेले तोहरो परनवा.
माटी में मिल जइबऽऽ हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.

धन दौलत और छूटी भवनवाँ,
जेहि खातिर हो गईलऽऽ बेइमनवा.
कुछुओ ना रह जाई हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.

लागी दरबार होखी तोहरो बयनवा,
का कहबऽऽ जब खाली बा खजनवा.
लोरऽवा खूब चूअइऽब हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.

दीनन हीनन से न राख तू गमनवा,
तोहपे लगईऽऽहैं वार तोहरे ईमनवा.
फिर पछताई के का करबऽऽ हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.

इक दिनवा पछतऽईबऽऽ हो मोरे मनवा इक दिनवा पछतऽईबऽऽ.
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दशरथ के ललन रऊआ धन बानी


धन बानी धन बानी धन बानी
दशरथ के ललन रउआ धन बानी.

बक्सर जाइके ताडका मरली
रिषी मुनियन के यज्ञ करवलीं
गौतम नारी अहिल्या के तरले बानी
दशरथ के ललन रउआ धन बानी.

जाइ जनकपुर शिव धनुष के तोडली
परशुराम के मान गिरवली
सियाजी के मनसा पुरवले बानी
दशरथ के ललन रउआ धन बानी.
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फगुनवा रास ना आवे


पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।

ननदी सतावे देवरा सतावे,
रही रही के जुल्मी के याद सतावे।
सासुजी देहली आशीष फगुनवा रास ना आवे।।

सखिया ना भावे नैहर ना भावे,
गोतीया के बोली जइसे आरी चलावे।
नींदियो ना आवे विशेष फगुनवा रास ना आवे।।

बैरी जियरवा कइसो ना माने,
रहि रहि नैना से लोरऽवा चुआवे
काहे नेहिया लगवनी प्राणेश फगुनवा रास ना आवे।।

पियवा गइले परदेश फगुनवा रास ना आवे,
ना भेजले कउनो संदेश फगुनवा रास ना आवे।।
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प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी


प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

दिहल केवरिया पवनवा खोलावे बरबस बेदर्दी के याद ले आवे,
रोय भरे सोरहो सिंगार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

छिटके चंदनिया अऽगीनिया लगावे सुतलस नेहिया इऽ बैरिन जगावे,
भावे ना अङ्गना दुआर हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

पिहके पपिहरा पनघट किनारे अपनी मोरनिया का मोरवा दुलारे,
सम्हरे न गगरी हमार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

सगरो फुलवरिया के फुलवा फुलाईल बन मतवारे भवरवा लोभाऽईल,
सहलो ना जाला बहार हे सजनी डासर सेजरिया जहर भऽईल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

सरसो से खेतवा पियराइल बिरहन कोयलिया के बिरहा उमड़ाइल,
नीर झरे साँझ भीनसार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।
प्रीत करे मीत के पुकार हे सजनी डासल सेजरिया जहर भऽइल।।

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बलम हमके टीवी मँगा दऽ


फिर आईल किरकिटिया बुखार बलम हमके टीवी मँगा दऽ,
नाही करबे हम कउनो सिंगार बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

वर्ल्ड कप हवे एकर अंगरेजी नाम,
नाही करबे हम कउनो काम धाम।
काम आई ना कउनो जुगाड़ बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

चार बरिस में एक बारि आई,
सारे देशवा पर नशा छा जाई।
जगतिया में फैलल ईऽ छुतिया बवाल बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

सचिन तेन्दुलकर अऊर रिकी पोटिंग,
युवराज अउर सहवाग के होइ जाई सेटिंग।
चौका छक्का के हो जाई बऊछार बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

वेस्टइंडीज के द्वीपन पर लग जाई मेला,
सोलह देशन के खिलाड़ी देखइहैं आपन खेला।
इंडिया पर लागल बड़ा दाँव बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

किरकिट ही खईऽबे किरकिट ही पहिनबे,
इंडिया के जीतला पर जलसा मनईबे।
रसोई से हो जाई महिना भर के लीव बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।

फिर आईल किरकिटिया बुखार बलम हमके टीवी मँगा दऽ,
नाही करबे हम कउनो सिंगार बलम हमके टीवी मँगा दऽ।।
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मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी


डोले फगुनऽईया जब डार पात लहरी,
मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी।
 
कुहुके कोयलिया तऽ पीरा होय गहरी,
अन्हियारे पिपरा पकड़िया जब झहरी।
फरल फुलायल सब गोयड़े कऽ रहरी,
भिनसारे महुआ से महुआ जब झहरी।
मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी।
 
संघिया के मार से प्रति नित कहरी,
मटक चले गोरी जब ताल व नहरी।
बिरहन सताये जब बसंत के प्रहरी
असुँअन छिपाये खातिर करे बरजोरी।
मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी।
 
फूलन पर भँवरा के झुण्ड आ ठहरी,
सबके घर अइलन जब परदेशी शहरी।
छलकल बिरह रस नैनन की डहरी,
शिकवा शिकायत के लागल कचहरी।
मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी।
 
डोले फगुनऽईया जब डार पात लहरी,
मीत बिना गीत लागे फागुन के जहरी।
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बदरा घुरि घुरि आवे अँगनवा में


बदरा घुरि घुरि आवे अँगनवाँ में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
 
मनके महल में सूधिया के पहरा प्रीत के हिड़ोले बिरहल लहरा,
दिल तार तार होला सपनवाँ में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
 
आस के डरिया में आँख अझुराइल मोह से आपन लोरवा टकाइल,
केहु लुक छिप जाला परनवाँ में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
 
नोचे खसोटेले रात सुधराई कोसे मसोसेले मारवान मिताई,
तनि आड़ घाँट बोधे बिहनवा में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
 
बैरिन बयरिया डोले बल खाय के कंगना पयलिया बोले इठलाय के,
चैन आवे न बैरी सँवनवा में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
 
बदरा घुरि घुरि आवे अँगनवाँ में नींद नाहि आवे भवनवाँ में।।
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ई कइसन जिनगी के खेला


ई कइसन जिनगी के खेला ई कइसन जिनगी के मेला,
ना कोई कुछ ले आईल बा ना ले जाई एगुड़ो धेला।।
 
काल करावे खेला लेकिन भूल गईल सब आपन बेला,
खून के होली खेल रहल बा स्वार्थ भरल दुनिया के रेला।
ई कइसन जिनगी के खेला........।।
 
भाई के भाई दुश्मन भईल बा न नाही बाचल कउनो थैला,
नारी ही नारी के काटत जिसम हो गईल ओकरो मैला।
ई कइसन जिनगी के खेला........।।
 
इंसानन के बीच में भगवन ई कइसन हैवानी खेला,
मात खा गईल जानवर जानी बचल रह गईल ठेलम ठेला।
ई कइसन जिनगी के खेला........।।
 
कलयुग कहके केतना खेलब आपन ई माया के खेला,
खतम हो रहल दुनिया बा प्रभु अब त खोलीं आपन थैला।
ई कइसन जिनगी के खेला........।।
 
ई कइसन जिनगी के खेला ई कइसन जिनगी के मेला,
ना कोई कुछ ले आईल बा ना ले जाई एगुड़ो धेला।।
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कइसन-कइसन जिनगी


का का कहीं कइसे चुप रहीं हम हर कदम पर सवाल करेला जिनगी,
जिनगी खुद एक सवाल बन गईल देख के कइसन कइसन जिनगी।।
 
माई के दूध खातिर बचवन लोग के अफनात जिनगी,
दस रूपया खातिर सौ रुपया के गोली खात जिनगी।
हर मौके पर लाचारन के लूऽटत खसोटत जिनगी,
पापी पेट खातिर आपन जिसम लुटावत जिनगी।
जिनगी खुद एक सवाल.....।।
 
जिनगी के खेला में दुसरा के जिनगी लुटावट जिनगी,
माई-बाबू के सेवा के बदला कुकुरन के घुमावत जिनगी।
सन्यास लेहला के बाद भी विलासिता से भरपूर जिनगी,
जवन चीज आपन ना बा ओ खातिर खून बहावत जिनगी।
जिनगी खुद एक सवाल.....।।
 
रिश्तन के टूटत सिमेन्ट से आपन गृहस्थी बसावत जिनगी,
नेतावन के मतलब परस्ती से जनता के बेहाल भईल जिनगी।
दुसरा के माल पर राजा बने कऽ ख्वाव देखत भईल जिनगी,
जवन डाल पर इंसान बऽईठल बा ओही डाल के काटत जिनगी।
जिनगी खुद एक सवाल.....।।
 
का का कहीं कइसे चुप रहीं हम हर कदम पर सवाल करेला जिनगी,
जिनगी खुद एक सवाल बन गईल देख के कइसन कइसन जिनगी।।
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गीत कहीं या गजल


गीत कहीं या गजल सब एहि में कहाईल बा,
आपन बर्बादी के हाल सब एहि में कहाईल बा।।
 
पढ़े के उमरिया में किरकिटिया खेलाईल बा,
एक से एक मँहग बल्ला किनाईल बा।
आज उहे बल्ला से हमार कपड़ा धुलाईल बा,
हमरा पहिला शौक के धुआँ धुआँ उड़ाईल बा।।
गीत कहीं या गजल..........।।
 
बाबुजी के कहना ना एगुड़ो सुनाईल बा,
लागल हमके फिल्मी रोग ईऽ कहाईल बा।
हर लड़की में हमरा हिरोईनी देखाईल बा,
हर सपना हमार टुटके बिखराईल बा।।
गीत कहीं या गजल..........।।
 
कमाई के बेला तऽ बस हाथे मलाईल बा,
इन्टरव्यु में कलकत्ता के मुबंई सुझाईल बा।
सिफारिश के बिना बस किस्मतिया कोसाईल बा,
चुग गइला खेत के बाद ही दुनिया पछताईल बा।।
गीत कहीं या गजल..........।।
 
आपन हाल देखके ही एगो सीख याद आईल बा,
जिनगी के खेल में हुनर ही सबसे बड़ मिसाईल बा,
ई कहनी तऽ आपन बाटे राउर खीस काहे निपोराईल बा,
अइसन त नईखे ई रचना में रऊओ कहनी दोहराईल बा।।
गीत कहीं या गजल..........।।
 
गीत कहीं या गजल सब एहि में कहाईल बा,
आपन बर्बादी के हाल सब एहि में कहाईल बा।।
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महँगी महँगी रटिया भइया


महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।
सबै जगह अधिकार हौ एकर काशी हो या रशिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
छोड़ऽऽ मन्दिर मस्जिद जाये नाहक जिन तु भटकिया,
रटते जइया सदा ए भइया कहीं न जिन तू अटकिया।
अगर से कोई जे तोहके छेड़े ओके तुरन्त झटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
सोते जगते खाते पीते एकरा संग ही लिपटिया,
करिहऽऽ अब परचार एहि कऽऽ एहि के संग मटकिया।
सस्ती कहीं से ताक लगावे ओके तुरन्त पटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
करला जहाँ विरोध ए भइया होईहे खूब पिटइया,
पड़ जाइ फाँसी औ जग में होइ नाम घिसइया।
सुख पइबा इहि में अब से इकरे नाम गटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
अच्छाई जे मन में आवे मन ही मन में सटकिया,
उपदेशक जिन बनिहा कबहु राह न एकरे फटकिया।
भूल के आपन दीन धरम अब सबकर माल कपटिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
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हमार सलाम बा


विश्व के सभै भाई बन्धुअन के हमार सलाम बा.
सबकर आपस के झगड़ा मिटावल हमार काम बा.

हिन्दु मुस्लिम सिख ईसाई सबके अपना पर गुमान बा.
इंसान कहइला कातिर वसुधैव कुटुम्बकम हमार मुकाम बा.

का पंडित का मौलवी अउर का फादर के ई मान बा?
पंचत्तव के मंदिर में सबकर अन्त समान बा.

काल करेब सो आज हौ कर लीं, अभयजी के इ कहनाम बा.
प्यार के खातिर समये नइके, फिर काहे के अभिमान बा
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बबुआजी हाईटेक भईलें


शहर में जाके गाँव के चोला उतार के दिहले फेंक
पढ़ लिख कर बबुआजी हमार, हो गइलें हाईटेक.

जवना धूल में बचपन बीतल, वोही धूल में वाइरस आइल.
बाबूजी का थिंकपैड में जेनरेशनगैप के साफ्टवेयर समाइल.
खेत सिवान का चर्चा से पहिले, आपन मेमोरी दिहलें फेंक.
पढ़ लिख कर बबुआजी हमार, हो गइलें हाईटेक.

संस्कारी दुलहिन के बदला लवमैरिज के विन्डो खोलाइल.
हमरा खातिर का कईलीं कह, बँटवारा के बनवलें फाइल.
हर रियेक्शन प एन्टीरियेक्शन के फार्मूला नाहीं कइले चेक,
पढ़ लिख कर बबुआजी हमार, हो गइलें हाईटेक.

देशी सिस्टम के गारी देके एनआरआई के पेनड्राइव बनाईल.
विदेशी रुपिया के सूद का खातिर देशी बैँक के मेल भेजाइल.
स्वार्थ के हार्डडिस्क में फुल मेमोरी पर स्वार्थ के रोटी दिहले सेंक
पढ़ लिख कर बबुआजी हमार, हो गइलें हाईटेक.
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नया रूप में कबीर वाणी


आईं सबही कोई मिल के एगो अलख जगावल जाय..
नया रूप में कबीर वाणी दुनिया के बतलावल जाय..

साफ सफाई के नारा ले के जग में ढ़ोल बजावल जाय..
जहाँ जहाँ पर मइल देखाए ओकरा मार भगावल जाय..
नया रूप में......

हक के माँग से पहिले सबके कर्तव्य याद करावल जाय..
विदेशीयन के विरोध से पहिले आपन नंगई हटावल जाय..
नया रूप में......

वेलेंटाइन डे के विरोध सही बा पर ई बात बताईल जाय..
बर बारात में नारी के नाचल कइसे सही जताईल जाय..
नया रूप में......

जाति पाति खेल निराला एकरा के बन्द करावल जाय..
एक कहे तऽ नौकरी दुसरा के काहे जेल भेजावल जाय..
नया रूप में......

महँगाई भ्रष्टाचार के आड़ में राजा के गरियावल जाय..
एकरा आड़ में खून चुसे वाला के काहे जोंक बनावल जाय..
नया रूप में......

आईं सबही कोई मिल के एगो अलख जगावल जाय..
नया रूप में कबीर वाणी दुनिया के बतलावल जाय..
............

केहू जल के बुझाला केहू....


हमरा कहला में भी एगो बात बा..
मानी ना मानी दुनिया एगो बिसात बा..
हमार खुशी देख के उनकर जियरा जरात बा..
उनकरा का मालूम कि हमार का का पिरात बा.
इधर दिन निकलेला उधर रात के अंधियारी.
उनकर बेवफाई पर हमार कलेजा तारतार होला.
दिया और फतिंगा में फर्क बा सिर्फ इतना..
केहू जल के बुझाला केहू बूझ के जराला..
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रिमझिम पड़ेला फुहार


रिमझिम पड़ेला फुहार हो देहियाँ में आग लगाये.
कइसे बचाई आपन जान हो देहियाँ में आग लगाये.

जबसे बलम जी परदेश गइलन, हमारे जियरवा के सुधि नाही लिहलन.
सासु जी के बोलिया में आग हो देहियाँ के आग लगाये..
रिमझिम पड़ेला फुहार हो...........

करेजवा के चीर जाला सहेलियन के बोलिया जरको ना सहाला उनकर ठिठोलिया
कइसे बुझाई आपन प्यास हो देहियाँ में आग लगाये.
रिमझिम पड़ेला फुहार हो...........

भेजतानी संदेसा हम अपना जूनून से सियाही ना समझीय लिखातानी खून से..
जियरा में नाही बाचल आस हो देहियाँ में आग लगाये.
रिमझिम पड़ेला फुहार हो...........

रिमझिम पड़ेला फुहार हो देहियाँ में आग लगाये..
कइसे बचाई आपन जान हो देहियाँ में आग लगाये.
...............
 

वारिस खातिर लइका चाहीं


वारिस खातिर लइका चाहीं मचल बा हाहाकार.
कोखी से ही लइकी साथे हो रहल बा भेदाचार.
हो रहल बा भेदाचार कि सुन लीं लइकन के करनी.
एगुड़े कोठरी में पेटवा काट के चार चार के पलनी.
कहे अभय कविराय कि अब आईल बा जमाना.
चार चार कोठरी के किला में भी ना माँ बाप के ठिकाना.
बोई ब पेड़ बबूल के त आम कान्हा से पई ब.
मार के लइकी के तू लइका कहाँ ले जई ब.
............

कलयुग के फेरा में भईया


कलयुग के फेरा में भईया सगरे जहर बुताइल बा.
कइसे बताईं पापी देहियाँ कहाँ कहाँ अझुराइल बा..

हमके पाले में बाबू के का का कष्ट झेलाईल बा..
पढ़ लिख के सबसे पहिले ही उनके लात मराईल बा.
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

एगो कमरा में चार चार के पलले एमा उनकर बड़ाई बा.
हमरा चार चार कमरा में भी उनकर नही समाई बा..
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

उनकर दौलत हमार दौलत हमार त हमरे कहाइल बा.
मेहरारू के अईते भईया घर के चुल्हा बटाईल बा..
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

वइसे ई बुराई में भी एगो सकारात्मक सोच देखाईल बा..
का गरीब अउर का अमीर सब एकही राग चिल्लाईल बा..
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

ई कहनी त घर घर के बाटे बाहर भी त रास रचाईल बा..
कामकाज में तरक्की खातिर मेहरारू पर दाँव लगाईल बा..
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

मानतानी ई खेला में केहु केहु ही जोताईल बा
पर अइसन मौका भी भईया सबके कहाँ भेटाईल बा..
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

प्यार मोहब्बत के खेला में मेहरारू के अदला बदली होखाईल बा..
जो खेले ऊ मॉडर्न बकिया के बैकवर्ड के तमगा दिलाईल बा.
कइसे बताईं पापी देहियाँ........

कलयुग के फेरा में भईया सगरे जहर बुताइल बा.
कइसे बताईं पापी देहियाँ कहाँ कहाँ अझुराइल बा..
............
 

पान खियाइके लूट लिहल हमके..


पान खियाइके लूट लिहल हमके..
कहे करेजवा तान के..
ए गोरिया रपट लिखा दऽ हमार..
अरे ए गोरिया रपट लिखा द हमार..

रपट लिखावे थाने गईलीं..
निकलल थानेदार हो..
जरा ईऽ तऽ कहा..
रपट लिखाईं कहाँ..
अरे ए थानेदार रपट लिखाईं कहाँ..
खुल के बता दऽ ओ रसिया..
रपट लिखाईं कहाँ..

जालिम जवानी दुश्मन हो गईल..
हो गईल अपना जान के..
जरा ईऽ तऽ कहा..
रपट लिखाईं कहाँ..

बरसेला बदरा भींगेला देहियाँ..
देखेला कनछी मार के
जरा ई त कहा..
रपट लिखाईं कहाँ..

पान खियाइके लूट लिहल हमके..
कहे करेजवा तान के..
ए गोरिया रपट लिखा दऽ हमार..
अरे ए गोरिया रपट लिखा द हमार..
...............

ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.


ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.
ईऽ आपन दिल हव जइसन चाहेब हो जाई.

बुजुर्गन के नसीहत भुलाईब जिन्दगी फूँक हो जाई.
मेहरारु के बकबकाईल भी कोयल के कूक हो जाई.
जिन्दगी रहे खातिर खाईब दू रोटी में पेट भर जाई.
किसमतिया के कोसत रहब तऽ अबरो खेत चर जाई.
ना चहला पर भी.

दूर के ढ़ोल सुहावन सोचब जिन्दगी खुशगवार हो जाई.
आसमान पर थुकला से खुद पर पलटवार हो जाई.
जोर जोर चिल्लइला से झूठ, साँच ना हो जाई.
समय अइला पर बरगद भी खाक में मिल जाई.
ना चहला पर भी.

दुसरा के गरिऔला से कुछुओ ना मिल जाई.
कुआँ पर गईला से सब प्यास मिट पाई.
हम ही हम बानी सोचब जिन्दगी उजड़ जाई.
एक बार मर के तऽ देखीं स्वरग मिल जाई.
ना चहला पर भी.

ना चहला पर भी जिन्दगी नरक बन जाई.
ईऽ आपन दिल हव जइसन चाहेब हो जाई.
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अभय जी के ई सब रचना पुरनका अंजोरिया पर बरीस 2010 से पहिले अंजोर भइल रहली सँ. अबहीं बहुते रचना बाकी बा. गँवे-गँवे जोड़ा पाई. आवत रहीं.